मरुधरा के ज़ायकों की महक: एक यादगार फूड फेस्टिवल - JW Marriott Pune में
- MK
- Jan 25
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JW Marriott Pune में आयोजित “राजस्थानी फूड फेस्टिवल” एक ऐसा अनुपम अनुभव था जिसने राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक और पाक परंपराओं को पुणे की पेशवाई धरती पर जीवंत कर दिया। यह त्योहार सिर्फ स्वादों का जश्न नहीं था, बल्कि माहौल, संस्कृति और सेवा का ऐसा संगम था जिसने हर मेहमान को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस “फेस्टिवल” ने हर किसी को एक अनूठा अनुभव दिया, जो स्वाद, सौंदर्य और समर्पण का आदर्श उदाहरण था।

यह उत्सव राजस्थान को उसकी पूरी भव्यता के साथ प्रस्तुत करने में सफल रहा। भोजन की व्यवस्था में सबसे खास बात यह थी कि पकवान सिर्फ “बुफे” के अंदर तक सीमित नहीं थे। खुले स्थान पर मिट्टी के बर्तनों में व्यंजन प्रदर्शित किए गए, जो न केवल पर्यावरण को प्राथमिकता देते हैं बल्कि हर व्यंजन को प्रामाणिकता का स्वाद भी देते हैं। इन बर्तनों की गरमाहट पारंपरिक “अंगीठियों” से बनाए रखी गई, जिसने पूरे अनुभव को एक पुरानी राजस्थानी रसोई की याद दिलाई।

प्रत्येक मेज पर सजे रंग-बिरंगे राजस्थानी खिलौने, पारंपरिक टेबल कवर और पूरे माहौल में बिखरी सांस्कृतिक सजावट ने ऐसा महसूस कराया जैसे हम राजस्थान के किसी उत्सव में ही शामिल हों। माहौल में चार चांद लगा रहे हल्के सुरों में बजते राजस्थानी लोकगीत, जो मरुधरा की खुशबू और लोक संस्कृति को जीवंत कर रहे थे। हल्की, सौम्य रोशनी, शानदार बैठने की व्यवस्था और पारंपरिक सजावट ने न केवल आंखों को सुख दिया, बल्कि मन को भी आनंदित कर दिया।

खाने की शुरुआत शानदार “स्टार्टर” से हुई, जिन्होंने हर “बाइट” में स्वाद का नया अनुभव दिया।

मिर्ची के टिपोरे अपने आप में एक स्वाद का उत्सव थे, जो तीखेपन और खट्टेपन का ऐसा संतुलन पेश कर रहे थे, जैसे मसालों की एक गहरी बातचीत थाली में हो रही हो। हर “बाइट” में खड़े मसालों की सोंधी महक और ताजगी महसूस हो रही थी। इसके साथ परोसी गई सिलबट्टे की चटनी, जो हाथों से पीसी गई थी, ने इस व्यंजन को एक नई ऊंचाई दी। चटनी में ताजगी, हल्की खटास और मिट्टी जैसी सोंधी सुगंध ने इसे टिपोरे के तीखे स्वाद के साथ एक आदर्श जोड़ी बना दिया।

मूर्ग बाजरे की सीख का अनुभव जैसे स्वाद और बनावट का एक अनूठा संगम था। बाजरे की हल्की खुशबू ने “चिकन” के रसीलेपन को एक ऐसा गहराई भरा आधार दिया, जिसे शब्दों में पिरोना मुश्किल है। सीख की नर्म बनावट और उसमें रचे-बसे मसालों का संतुलित संयोजन हर “बाइट” को ऐसा महसूस करा रहा था, जैसे यह व्यंजन राजस्थान की मिट्टी से सीधा उठकर आपकी थाली में आया हो। इसमें इस्तेमाल किए गए मसालों की गहराई ने हर टुकड़े को स्वाद और सुगंध से भर दिया, जो लंबे समय तक याद रह गया।

इसके बाद शिकारी गोश्त कबाब का स्वाद ऐसा था, जैसे यह राजस्थानी शाही खानपान का प्रतीक हो। इनमें न केवल धुएं का गहरा और लुभावना “फ्लेवर” था, बल्कि गोश्त की कोमलता ने हर “बाइट” को ऐसा महसूस कराया जैसे इसे “परफेक्शन” के साथ पकाया गया हो।
मसालों का मिश्रण न तो अधिक तीखा था और न ही हल्का—यह एक परिपूर्ण संतुलन था। गोश्त में लगी हल्की सी “चार” की महक और उसकी नमी ने इसे एक ऐसी “डिश” बना दिया, जिसे खाकर राजसी शान का एहसास हो रहा था। हर मसाले ने अपने अद्वितीय स्वाद और सुगंध से एक गहरी छाप छोड़ी, जो न केवल जीभ पर बल्कि दिल पर भी अमिट रही।
मुख्य “कोर्स” की थाली में राजस्थान की गहराई और विविधता नज़र आई।

मसाला दाल बाटी, जो राजस्थानी व्यंजनों की आत्मा मानी जाती है, अपनी प्रामाणिकता और शाही स्वाद के साथ परोसी गई। कुरकुरी बाटी, जिसे लकड़ी के चूल्हे की महक में पकाया गया था, जब मक्खन से सजी गाढ़ी और मसालेदार दाल में डुबोकर खाई गई, तो यह सिर्फ एक व्यंजन नहीं बल्कि स्वाद की पराकाष्ठा का अनुभव था। हर “बाइट” में बाटी की सोंधी सुगंध और दाल की गहराई भरी मसालेदार ताजगी का ऐसा मेल था, जो न केवल पेट, बल्कि आत्मा को भी संतुष्टि दे रहा था। दाल में मसालों का संतुलन और उसमें छौंकी गई हींग और जीरे की सुगंध ने इसे और भी दिव्य बना दिया।
इसके साथ परोसे गए तीन प्रकार के चूरमे ने मिठास के अलग-अलग पहलुओं को सामने रखा। बाजरे का चूरमा अपने मिट्टी जैसे सोंधेपन और मोटे दानेदार “टेक्सचर” के साथ विशिष्ट था। इसे घी और गुड़ के साथ परोसा गया, जिसने स्वाद में एक गहराई और पुरानी परंपराओं की झलक दी। बेसन का चूरमा, अपने भुने हुए स्वाद और करारी बनावट के लिए खास था। इसमें हर “बाइट” के साथ घी और भुने बेसन का आनंद दिल को सुकून दे रहा था। वहीं, गेहूं का चूरमा अपनी कोमलता और हल्की मिठास के लिए सबसे अलग था। इसका मखमली “टेक्सचर” और गुड़ की मधुरता हर किसी को अपने बचपन की यादों में ले जा रही थी।
यह तीनों चूरमे सिर्फ मिठाई नहीं थे, बल्कि राजस्थानी खानपान की गहरी समझ और कारीगरी का प्रतीक थे। इनकी मिठास ने पूरे भोजन को संतुलित करते हुए इसे एक संपूर्ण और अविस्मरणीय अनुभव बना दिया।

केर-सांगरी की सब्जी, जो राजस्थान के रेगिस्तान की समृद्धता और परंपरा की दास्तान सुनाती है, ने हर किसी को यह एहसास कराया कि कैसे प्राकृतिक संसाधनों की सीमितता के बावजूद, स्वाद और गुणवत्ता में कोई समझौता नहीं किया जा सकता। केर और सांगरी, जो इस शुष्क क्षेत्र की विशेषताएँ हैं, अपनी कठोरता के बावजूद अद्भुत बनावट और स्वाद से भरे हुए थे। उनके मसालेदार और खट्टे स्वादों का संयोजन हर “बाइट” में एक नई कहानी कहता था। इनका खट्टापन, हल्की सी कड़वाहट और मसालों का संतुलित मिश्रण वाकई दिल को छूने वाला था। यह व्यंजन न केवल एक स्वाद का अनुभव था, बल्कि यह राजस्थान के दिल से निकलकर सीधे आपके प्लेट में आकर उसकी जीवंतता को महसूस करा रहा था।
इसके साथ पिटोड़ की सब्जी, जिसमें बेसन के मुलायम टुकड़े हल्के खट्टे और मसालेदार “ग्रेवी” में डूबे हुए थे, हर थाली को न केवल संतुलित बल्कि परिपूर्ण बना दिया। पिटोड़ के नरम टुकड़े, जो मसालेदार और खट्टी करी में समाहित थे, ने इसका स्वाद और भी गहरा और दिलचस्प बना दिया। इस व्यंजन के साथ परोसी गई बाजरे और मक्के की रोटियां, जो अपनी मिट्टी जैसी खुशबू और मुलायम “टेक्सचर” के लिए जानी जाती हैं, ने इस अनुभव को और भी प्रामाणिक और यादगार बना दिया। ये रोटियां न केवल भोजन का स्वाद बढ़ा रही थीं, बल्कि वे इस पूरे भोजन की विरासत और राजस्थान के सांस्कृतिक स्वाद को भी जीवित रख रही थीं।
यह पूरी थाली एक सशक्त बयान था राजस्थान के किलों, रेगिस्तानों और उसकी संसाधनशीलता का। हर “बाइट” में राजस्थानी किचन की रचनात्मकता और उसकी आत्मा की झलक मिल रही थी।
“डेज़र्ट” का अनुभव इस भोजन यात्रा का शिखर था।

मालपुआ संग रबड़ी का स्वाद सचमुच एक शाही अनुभव था, जैसे किसी महल में आयोजित उत्सव में मिठास का जश्न मनाया जा रहा हो। इसके सुनहरे, करारे किनारे और “सिरप” में डूबे मुलायम भाग ने हर “बाइट” में न केवल स्वाद की गहराई, बल्कि एक ठहरी हुई काव्यात्मकता का अहसास दिलाया। रबड़ी की मलाईदार बनावट और उसमें घुली केसर की खुशबू ने इस मिठाई को एक सशक्त, समृद्ध और हर हंसी को खुशहाल कर देने वाला अनुभव बना दिया। रबड़ी के साथ हर “बाइट” को चखते समय ऐसा लगता था जैसे किसी सुनहरी परंपरा के अद्वितीय स्वाद का अहसास हो रहा हो, जो सालों से एक ठहराव के रूप में हमारे भीतर बैठा हुआ हो।
वहीं, मलाई घेवर ने मिठास के अनुभव को एक बिल्कुल नए और अभूतपूर्व स्तर पर पहुंचा दिया। घेवर, अपनी कुरकुरी बनावट और मलाईदार “टॉपिंग” के साथ, स्वाद और बनावट का अद्भुत संतुलन प्रस्तुत कर रहा था। उसकी हल्की सी करारी परत और ऊपर की मोटी मलाई ने उसे और भी खास बना दिया। घेवर का यह दोहरापन, हलके मीठेपन और मलाई की समृद्धता का सम्मिलन एक ऐसा अनुभव था जिसे न सिर्फ स्वाद ने बल्कि शरीर और आत्मा ने भी महसूस किया।
यह दोनों मिठाइयाँ ना केवल राजस्थानी खानपान की विशिष्टता का परिचायक थीं, बल्कि यह पूरे भोजन के परिपूर्ण और शाही समापन का प्रतीक थीं, जो राजस्थानी संस्कृति और उसकी पारंपरिक मिठास की शानदार अभिव्यक्ति थी।

इस पूरे उत्सव की सफलता का श्रेय उन सभी कर्मचारियों को जाता है जिन्होंने इसे अपने समर्पण और निष्ठा से एक यादगार आयोजन बना दिया।

इस “मेन्यू” को तैयार करने वाले “शेफ” भूरालाल प्रजापति ने अपनी पाक कला का जादू हर व्यंजन में बिखेरा। उनके साथ “शेफ” संध्या, “शेफ” ब्लेसिका, और अतिथि “शेफ” राजेंद्र ने हर डिश को अपनी कला और मेहनत से सजाया।
इन सभी की मेहनत को और भी ऊंचाई दी “एग्जीक्यूटिव शेफ” मिहिर काणे के नेतृत्व ने, जिनकी बारीकी और देखरेख ने हर व्यंजन को एक कला का रूप दिया। उनके नेतृत्व में पूरी “किचन ब्रिगेड “ ने भोजन को सिर्फ स्वाद का नहीं, बल्कि भावना का अनुभव बना दिया। समस्त रांधनो के समूह ने व्यक्तिगत और सामूहिक रूप अपने जादूगरी योगदान से स्वाद और सुगंध को बेहतरीन तरीके से उजागर कर दिया!
विशिष्ट आभार के पात्र हैं श्री राहुल गौतम, श्री पीयूष भूषण और अमित नेगी जिनके कुशल नेतृत्व और बारीकी भरे प्रबंधन ने इस अद्भुत राजस्थानी “फूड फेस्टिवल” को साकार किया। उनकी दूरदृष्टि और समर्पण ने इस आयोजन को न केवल उत्कृष्ट बनाया, बल्कि हर मेहमान के लिए इसे एक यादगार अनुभव में बदल दिया। यह उनकी देखरेख और समर्पण का ही नतीजा है कि परंपरा, स्वाद और सेवा का यह अनूठा संगम इतने भव्य और प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत हो सका। उनके प्रयासों को जितनी भी सराहना दी जाए, वह कम होगी!
इसके साथ ही, होटल की “एफ एंड बी टीम” ने अपनी गर्मजोशी और पेशेवरता से इस आयोजन को और भी खास बना दिया। रंजन खुराना, निखिल, प्रियंका, अपब्रिता, और प्रवीन जैसे कर्मचारियों ने हर मेहमान को यह महसूस कराया कि वे इस अनुभव का अभिन्न हिस्सा हैं। उनकी मुस्कान और स्नेह ने इस “फेस्टिवल” को एक व्यक्तिगत और अनोखा स्पर्श दिया।

यह सिर्फ एक “फूड फेस्टिवल” नहीं था; यह राजस्थान की संस्कृति, परंपरा और स्वाद का ऐसा उत्सव था जिसने हर किसी के दिल और आत्मा को छू लिया। JW Marriott Pune ने इसे जिस खूबसूरती और विस्तार के साथ प्रस्तुत किया, वह प्रशंसा के योग्य है। यह आयोजन न केवल पेट को तृप्त करने वाला था, बल्कि हर मेहमान को राजस्थान की आत्मा से जोड़ने वाला अनुभव भी था।
मानव कौशिक
Don’t Waste Food (DWF)
(खाना व्यर्थ मत जाने दें)
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